एक वो दिन थे
बचपन में श्राद्ध भी कहाँ अपने
दिवाली और होली से भिन्न थे।
खीर पूरी की खुशबू से पूरा घर
जैसे महक सा जाता था।
माँ के हाथ के बने श्राद्ध के खाने से
दिल बहक सा जाता था।
एक दिन पापाजी हमारे दादा
और एक दिन झाई जी हमारी दादी का होता था श्राद्ध।
दस ग्यारह पंडितों का घर में आना
श्रद्धा और भक्ति से हवन कुंड का दहक जाना।
और सबसे पहले पापा का कुकुर ,गाय और कौवे को भोग लगाना।
और अपने पितरों के नमन में सर झुकाना।
एक वो दिन थे
रिश्तेदारों का हमारे घर में लगता था मेला।
पर पापा को कुछ बुझा -बुझा सा पाना अकेला
हम कुछ समझ ना पाते थे बस माँ के हाथ के खाने का लुत्फ़ उठाते थे।
एक वो दिन थे।
फिर दिन बदले
मायका छोड़कर ससुराल की राह और गली हो ली।
ज़िंदगी मानो एक अनबुझ पहेली हो गई।
अधिकार धूमिल और बोझिल से हो गए
जिम्मेवारी और कर्तव्य सर्वोपरि हो गए।
ससुराल का पहला श्राद्ध
हाथों से अपने पहली बार खीर और पूरी बनाई
मन बहुत अधीर और अशांत था
पितर अब मायके नहीं ससुराल के थे अपनाने।
अमावस का यह श्राद्ध अब दिल को जलाता है।
पितरों को नमन अब स्वाद नहीं दर्द का अहसास दिलाता है।
कुछ टूटता है
कुछ बिखरता है।
क्योंकि अमावस का दिन अब आपका भी है पापा
इससे पहले की हम पितर कौन है समझ पाते
पापा से आप भी अचानक पितर हो गए ।
इतर की खुशबू की तरह आप भी कहीं काफूर हो गए।
यह परलोक भी कैसा लोक है जहाँ के आप वासी हो गए।
जहाँ बस मौत के परों से होती है सवारी
और चार कंधों की है बस गाड़ी।
काश ! आप देख पाते
कैसे आपके अंश हैं अपना फर्ज़ निभाते।
काश! आप लौट पाते
और हम आपको अपने हाथों से कुछ खिला पाते।
पर काश तो काश है
जहाँ सपने में भी सपने सच ना हो यह वो आकाश है।
सुना है
श्राद्ध के दिन पूर्वज धरती पर आते हैं।
और फिर लौट कर अगले बरस आने को अमावस को फिर यमलोक लौट जाते हैं।
फिर क्यों श्राद्धों में हम आपको देख नहीं पाते ?
फिर क्यों नहीं आप धीरे से कुछ कानों में आकर फूसफुसाते?
क्यों नहीं आप आस- पास हो यह अहसास दिलाते ?
अगर ऐसा होता तो अमावस का दीपक विदाई का दीपक हम शाम को फिर कभी ना जलाते
और हाथ जोड़कर जाने को कभी ना कहते बल्कि आपको अपनी श्वासों से बाँध लेते ।
एक वो दिन थे
एक यह दिन हैं
अब आपका सूनापन ,आपका अकेलापन हमारा होगा।
पर अब बस आप नहीं
आपका बस श्राद्ध होगा
साल दर साल बस आपका श्राद्ध होगा।
👏👌👌👏👏👏👏
ReplyDeleteManika tumne mere dil ke bhav shabdon mein piro diye.Bahut sundar or bahut sach
ReplyDeleteVary Nice. . . कमाल
ReplyDeleteVery touching poem
ReplyDelete💯
ReplyDeleteVery nice...
ReplyDeleteVery nice lines....touched my heart...I too miss my dad a lot
ReplyDelete😔🙏
ReplyDeleteI have tears in my eyes. 💔💔
ReplyDeleteजैसे जैसे मैं यह ब्लॉग पढ़ रहा था ,
ReplyDeleteजीवन के सत्य अर्थ को समझ आ रहा था ।🙏🙏🙏🙏🙏
Very nice use of words madam , keep enlighten the world with your great blogs........
Kadwi hai, par sacchai hai...
ReplyDeleteFull of emotions....
Very heart touching mam.. 💯💯
ReplyDeleteदिल को छू गई।
ReplyDeleteReally a very emotional poem depicting your emotions...
ReplyDeleteI was in tears throughout while reading remembering the most loved one.. the biggest loss ever..a setback...and what not
Heart touching poem.
ReplyDeleteHeart touching poem really very nice
ReplyDeleteBeautifully written 👏 ❤
ReplyDeleteWow! :)
ReplyDelete(•_•)
Extremely touching poem . Well done Manika.Brilliantly composed.
ReplyDelete...deep emotional poem
ReplyDeleteGreat lines
ReplyDeleteHeart touching poem❤❤
ReplyDeleteHeart touching 💜
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