श्री राम ही जाने कैसा समय का यह फेर है?
जिधर देखो हर ओर अब हेर-फेर है।
जब "मैं" बहन तो भाभी बुरी ।
जब "मैं" भाभी तो ननद चालाक-चतुरी।
ना जाने कौन सा कलयुग का यह दौर है?
देखकर आज भाई- भतीजे अब क्यों अकसर बहनों के दिल जले?
सदियों से मायका था वीर का।
पर फिर आज जो भाई-भाभी का घर बसे
तो लुटेरे और साँप की तरह कुडंली मारने का उन पर कलंक चुभे तीर सा?
ससुराल में बेटी -बहन बोझ
और मायके में कभी खत्म ना होने वाली ज़िम्मेवारी।
वर्षों जो भाई ज़रूरत पड़ने पर बहन का हाथ थामे
जो वक्त आने पर देखकर बहन के सिर पर सुख की छाया
अपने परिवार का रूख करे तो भी अँगुली उसी पर उठे।
तो भी उसे दुआएँ क्यों ना मिलें?
कानून का लेकर सहारा ना जाने कितनी बेटियों ने है अपना मायका बिगाड़ा?
झूठे आँसू ,झूठी दलीलें
एक बार ईमानदारी से जो मतलबी बहनें अपनी तिजोरी,
अपना बैंक बैलेंस गिन ले तो शायद वह कर पाएँ समय पर पश्चाताप।
पुश्तैनी संभाल कर सोना भी जिनके भाग्य में ना हो चैन से सोना, ऐसी बहनें रखें याद
भाभी के भाईयों और मायके से जिनको है जलन
बस एक बार,बस एक बार मायके में उसका भी देख लें चलन।
जो जान जाएँ भाभी की तरह कलयुग की बहनें भी यह राज?
भाभी है मायके की खुशियों की चाबी और
भाई में दिखता है जिन बहनों को पिता का प्रतिबिंब,
मायके में छूटते हैं उन्ही बहनों के कदमों के चिहन।
और कैसे पलकों पर बिठाकर रखती हैं वह अपनी भाभी को!
कैसे भाई से पहले वह भाभी का करती हैं ध्यान!
कैसे देखकर भाईयों की उन्नति वो फूली नहीं समाती!
कैसे हीरे,जवाहरात,जायदाद,रुपए -पैसे से ऊपर रखती है वह मोल अपने भाईयों के प्यार का!
कैसे वह सपने में भी नहीं कोसती अपने भाईयों को।
कैसे हरपल वह माँगे अपने भाईयों -भतीजों की खैर खबर!
कैसे कभी अपने माँ-बाप के वह शिकवे-शिकायतों से भरती नहीं कान!
कैसे वह रात -दिन अपने भाईयों की सलामती का मन में है दीप जलाती!
कैसे भूल जाती हैं कलयुग की कुछ बहनें ?
प्रकृति का यह दस्तूर है घोंसले से उड़कर हर परिंदे को अपना एक अलग घोंसला बनाना होता है।
भाई का घर,
बहन का घर,
दादी का घर,
नानी का घर,
बुआ का घर,
मौसी का घर,
चाचा का घर या ताया का घर,
मामा का घर,
घर से घर बनते जाते हैं।
फिर क्यों भाई का घर बसते देख कुछ बहनों के दिल जलते रहते हैं?
क्या बहनों के सिर्फ हक बनते हैं जिम्मेवारी कोई नहीं?
जो जान जाएँ सब बहनें यह कि भाईयों के सिर पर पाँव रखकर राज नहीं होते।
भाभी की जो रखे ना लाज उन ननदों के मायके ना हुए ,ना हैं,ना होंगे तो शायद सदियों तक भाई-बहन का पवित्र रिश्ता कभी ना होगा मलिन।
और बुआ हो या मामी बराबर होगा दोनों का मान और सत्कार।
True to every word!!
ReplyDeleteReal depiction of today's so-called relations..
Tooooo good maam
ReplyDeleteVery sensitive
ReplyDeleteTrue very true. 👍👍
ReplyDeleteVery true
ReplyDeleteBitter truth
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteReality, unfortunately of today's world🙁🙁
ReplyDeleteReality of today's world (crystal clear poem)
ReplyDeleteDepicts the reality of today's world.... Keep it up👍👍
ReplyDeleteEvery female needs to understand the gist of this poem
ReplyDeleteVery nice mam
ReplyDelete