क्यों आज खेत खलिहान अपने छोड़ सड़कों पर उतरे हैं किसान भारत के?
क्यों छोड़कर अपनी छत सर्दी में,
साथ लेकर राशन पानी सड़कों पर उतरें हैं किसान भारत के?
क्या सोचा हमने क्यों आज परेशान हैं किसान भारत के?
क्या शौक से भटक रहे हैं बेदर किसान भारत के?
क्या समझा हमने क्यों कोल्हू के बैल की तरह सदियों से पीसते हैं किसान भारत के?
सदियों से जो बनकर अन्नपूर्णा भरते हैं फसलों से गोदाम भारत के।
क्यों जमाखोरी और कालाबाजारी के शिकार हुए किसान भारत के?
गर्मी,सर्दी या हो बरसात रात-दिन ,सुबह -शाम निस्वार्थ काम करते हैं किसान भारत के।
आँधी, तूफ़ान,बाढ़ और सूखे की मार को साल दर साल झेलते किसान भारत के।
क्यों आज किरकिरी की तरह चुभ रहे किसान भारत के?
जय जवान जय किसान का नारा क्या भूल गए इंसान भारत के?
क्या कभी हम रूके कुछ पल और देखा क्यों हर किसान को लगता है उसे मिला है हरपल धोखा?
क्या कभी हमने सोचा कर्ज़ के बोझ से दबे ना जाने कितने किसान हैं फंदो पर लटके?
ज़रा ठहरें, रूके और करे विचार
भारत के किसान अपनी मिट्टी से जो है बेजोड़ जुड़े
जो सपनों में भी कभी ना चाहें रूख बेदिल शहरों का
क्यों आज देश के दिल दिल्ली की और है काफ़िले लेकर मूड़े?
जो तोड़ दे उसकी हिम्मत क्यों थोपे जाएँ ऐसे कानून किसान
भारत पे?
रूह काँपती है और दिल टूटता है
देखकर बेदर्द तरीके सरकारों के
जो रोककर रास्ते खड़े हैं हमारे अन्नदाता सरदारों के।
गाँधी के इस देश में
क्या आज हम भूल गए सत्याग्रह और दांडी मार्च?
दिल्ली दिलवालों की
जहाँ हाथ जोड़कर होता है हर विदेशी का स्वागत
जहाँ जंतर मंतर हो या इंडिया गेट हर कोई उन्हे सकता है देख।
बस अन्नदाता के लिए वहाँ है पहरा।
अमावस की रात सा देश में अँधेरा छा रहा है गहरा।
चाहे किसी ढाबे,किसी पाँच सितारा होटल
किसी घर,किसी मंदिर, चर्च,मस्जिद या गुरुद्वारे की हो थाली
बिना किसानों के ना सजेगी उनपर सब्ज़ी रोटी और रह जाएँगे सब बर्तन खाली।
पत्थर,कंकर हो या रोडी़
पानी हो या आँसू गैस के गोले
आज जो होते उनमें प्राण तो होते वो शर्मसार
देखकर किसानों से बुरा व्यवहार ।
जो वो देख पाते तो किसानों के कदमों का करके स्पर्श उल्टी दिशा में आप पलट जाते।
शांति के पूरक
माँ की ममता की जो है मूर्त
यह हैं किसान भारत के।
क्यों आज हम समझ नहीं पाते धन्य होना चाहिए दिल्ली भारत के दिल को
क्योंकि वहाँ आज अन्नदाता के पूज्य कदम हैं बढ़े।
क्यों आज नहीं पहुँच पाती सरकार तक
उनकी करूण पुकार और गुहार जो लेकर बढ़े हैं किसान भारत के।
ऐसा लगता है बहरे हो गए हैं कान भारत के।
ना हैं आतंकवादी ना अलगाववादी किसान भारत के।
भूल ना जाना
याद रखना
भारत की आन,बान,शान,पहचान,नींव और जान हैं किसान भारत के।
Well said mam.👍
ReplyDeleteV. Nice poen, well said
ReplyDeleteWah .so true.
ReplyDeleteWell said,Mam
DeleteTrue
DeleteVery true
ReplyDeleteTrue
ReplyDeleteWell said
ReplyDeleteWell done ✅ each and every word is true 👏😁
ReplyDeleteExcellently portrayed plight of farmers...
ReplyDeleteTrue emotions of the farmers they are always hard working either in the field or to stand for justice.
ReplyDeleteAmazing mam ,well said mam
ReplyDeleteSuperb
ReplyDeleteBeing son of a farmer.....I feel how beautifully you described each and every emotion of a farmer 👨🌾🥦🥦🌽🍅🥕🍇🍎🍏......YOU R GREAT MAM... & once again CONGRATULATIONS for your books MAM🤩🤩
ReplyDeleteTruly depicting the current scenario
ReplyDelete