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Showing posts from July, 2020

अंश हो तुम मेरा ।

अंश हो तुम मेरा। An attempt to step into the shoes of a dear one from whom God has snatched away a young son,who wasn't even 25 yet..... अंश हो तुम मेरा। मेरे हृदय का टुकड़ा नहीं तुम तो मेरा हृदय हो। क्या कभी दुस्वप्न में भी मैंने सोचा अंत होगा तुम्हारा ? निर्जिव ढ़ेर मिट्टी का मेरा प्यारा लाल होगा? और जीवन में मेरे अब हरपल अकाल होगा? बड़े-बड़े तुफ़ानों से मैं लड़ गई  बस हर बार डूबने से खुद को इसलिए बचाया क्योंकि अंश हो तुम मेरा। आधार हो तुम मेरा। मेरे जीवन का लक्ष्य भी तुम और पतवार भी तुम। जो आया है वो जाएगा  मानती हूँ ऐसा पहली बार हुआ नहीं सुना भी ,और देखा भी माँओ ने अक्सर अपना लाल खोया। क्या दुस्वप्न में भी मैंने कभी सोचा मेरा भी यह हाल होगा। खून से अपने सींच कर  सपनों में अपने सहेज कर मैंने हर पल तुम्हें बढ़ते और सम्भलते देखा फिर कैसे आज तुम्हे जाते देखूँ? कैसे आज तुम्हे अंतिम बार देखूँ? कभी पीछे से तुम्हे आवाज़ ना दी सुना है यह शुभ नहीं काश! मैं बस कल एक बार पुकार लेती  नज़र तुम्हारी घर की दहलीज़ पर उतार लेती तो आज अशुभ शुभ होता। आज जब तुम जा रहे हो सब छोड़कर मुँह मुझसे मो...