यह कौन सी रुत है?
यह कौन सा मंज़र है?
यहाँ खंज़र की धातु बदल गई ।
ना ताँबा ,ना लोहा
मिट्टी की मानुष काया भयावह तलवार हो गई।
यहाँ बस अब खौफ़ बेखौफ़ है।
आज आदमी आदमी को देखकर डरता है।
भाई को भाई से परहेज़ है।
अब ना कोई भाईचारा
हर आदमी बेरौब है।
इस पल ना बचा कोई अड़ोस-पड़ोस।
ना जाने कहाँ खो गए उजले सवेरे?
अब तो दिन में भी हैं छाए कातिल अँधेरे।
उम्मीद की दूर-दूर कोई किरण नज़र ना आए।
हर साँस घुटती जाए।
मायूसी ,उदासी पुरजोर है।
ना अब तेरा ना मेरा है
अब सारे विश्व का चक्काजाम है।
क्योंकि यहाँ बस खौफ़ बेखौफ़ है।
हर साँस ,हर आस पर एक अनजान पहरा है।
विश्वपटल पर अब ना कोई खुशी की चहल पहल है।
बस अदृश्य शत्रु का हड़कंप है।
स्कूल, कॉलेज, बाज़ार, दफ़्तर, खेत खलिहान,
मैदान, मॉल और सिनेमा हॉल
सब बेज़ान और बेहाल हैं।
लाशों के अब अंबार हैं
कब्रिस्तान भी आज चीन,स्पेन,इटली और अमरिका में बेईमान हैं।
ना अब आसानी से चार कंधे नसीब हों।
कंधे तो कंधे ना जाने अब कितनों के हिस्से में दो बीद्या ज़मीन हो।
क्योंकि यहाँ बस खौफ़ बेखौफ़ है।
बाहर आने जाने का यह वक्त बेवक्त है।
वो सब जो बिगड़ा है संवर जाएगा।
वो सब जो उजड़ा वीरान है आबाद हो जाएगा।
वो सब जो बिखरा है संभल जाएगा।
वो सब जो खोया है मिल जाएगा।
वो सब जो गँवाया है फिर कमाया जाएगा।
वो सब जो दूर हैं पास आ जाएँगे
दूर हो जाएँगे सब गम
जो आज कुछ और पल, कुछ और दिन थम गए हम।
दूर हो जाएँगे सब गम
जो आज कुछ और पल, कुछ और दिन थम गए हम।
✨✨
ReplyDelete👌👌
ReplyDeleteVividly describes current scenario 👌👌
ReplyDeleteAmazing...
ReplyDeleteVery good poem
ReplyDeleteNice Poem
ReplyDeleteReally true & nicely described
ReplyDeleteVery nice mam
ReplyDeleteVery NYC poem
ReplyDeleteKamaal manika. Proud of you
ReplyDeleteThank you everyone for encouraging me always
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना,मणिका,भावो की लाजवाब अभिव्यक्ति
ReplyDeleteAmazing poem👌
ReplyDeleteआपकी रचना प्रशंसनीय है.. शाबाश !!
DeleteVery nice Manika mam
ReplyDeleteVery nice poem
ReplyDeleteNice..
ReplyDeleteVery nice expression ma'am
ReplyDeleteNice👏
ReplyDelete👌👌👏👏
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